
देहरादून/नैनीताल।
उत्तराखंड के प्रमुख पर्यटन स्थल नैनीताल में लंबे समय से चली आ रही पार्किंग समस्या के समाधान की दिशा में एक अहम कदम उठाया गया है। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने नैनीताल स्थित शत्रु संपत्ति – मेट्रोपोल होटल परिसर को अस्थायी रूप से उत्तराखंड सरकार को पार्किंग उपयोग के लिए आवंटित कर दिया है।
मुख्यमंत्री के अनुरोध पर केंद्र का निर्णय
यह निर्णय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के प्रयासों का प्रतिफल है। उन्होंने नैनीताल में पार्किंग की गंभीर समस्या को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह को पत्र लिखकर मेट्रोपोल होटल परिसर के खुले स्थान को पार्किंग के लिए अस्थायी तौर पर देने का अनुरोध किया था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मुख्यमंत्री को पत्र के माध्यम से यह सूचना दी गई कि गृह मंत्रालय ने अनुरोध स्वीकार कर लिया है। अब यह स्थल आगामी आदेश तक सरकारी पार्किंग के रूप में उपयोग में लाया जा सकेगा।
पर्यटन और स्थानीय लोगों को राहत
इस फैसले से नैनीताल आने वाले पर्यटकों और स्थानीय नागरिकों को काफी राहत मिलेगी। खासकर पर्यटन सीजन में जहां शहर की संकरी सड़कों पर ट्रैफिक जाम आम बात बन गई थी, अब पार्किंग सुविधा मिलने से यातायात व्यवस्था में सुधार की उम्मीद है।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने इस निर्णय पर केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह का आभार व्यक्त करते हुए कहा,
“इससे नैनीताल जैसे पर्यटन नगरी में पार्किंग की गंभीर समस्या को दूर करने में बड़ी सहायता मिलेगी और शहर में यातायात का दबाव कम होगा।”
शत्रु संपत्ति क्या है?
शत्रु संपत्ति से आशय उन अचल अथवा चल संपत्तियों से है, जिन्हें वे व्यक्ति या संस्थाएँ भारत में छोड़ गए थे जो वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध तथा 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान या उसके बाद भारत छोड़कर दुश्मन देश (मुख्यतः पाकिस्तान और चीन) में जाकर बस गए थे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
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प्रारंभ में इन संपत्तियों को भारत रक्षा नियम, 1962 के तहत अधिग्रहित किया गया था।
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यह नियम भारत रक्षा अधिनियम, 1962 के अंतर्गत अधिनियमित किया गया था।
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इन संपत्तियों का नियंत्रण गृह मंत्रालय के अधीन एक विभाग, भारत के शत्रु संपत्ति संरक्षक (Custodian of Enemy Property for India – CEPI) को सौंपा गया।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ:
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वर्ष 1966 के ताशकंद घोषणापत्र में भारत और पाकिस्तान के बीच इन संपत्तियों की वापसी पर चर्चा हुई थी, लेकिन पाकिस्तान ने वर्ष 1971 में अपनी ओर की शत्रु संपत्तियों का निपटान (Disposal) कर दिया।
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इसके प्रत्युत्तर में भारत ने वर्ष 1968 में ‘शत्रु संपत्ति अधिनियम’ पारित कर इन संपत्तियों पर स्थायी कब्ज़ा बनाए रखा।
कानूनी स्थिति:
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शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के अनुसार, कोई भी भारतीय नागरिक शत्रु संपत्ति पर स्वामित्व या उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकता यदि उस संपत्ति का स्वामी ‘दुश्मन’ के रूप में परिभाषित व्यक्ति था।
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यह संपत्ति भारत सरकार के आधिकारिक संरक्षण में मानी जाती है और इसका प्रशासन CEPI के माध्यम से होता है।