
नैनीताल (उत्तराखंड):उत्तराखंड के नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक का भद्रकोट गांव इन दिनों चर्चा में है – कारण कोई खेलकूद या विज्ञान प्रदर्शनी नहीं, बल्कि वहां के स्कूल का “ऐतिहासिक प्रदर्शन” है। राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भद्रकोट ने इस साल बोर्ड रिजल्ट में कुछ ऐसा कर दिखाया है जो शायद ही किसी ने किया हो, और शायद ही कोई स्कूल ऐसा करना चाहता हो।
अब आप सोच रहे होंगे – बच्चों की कमी होगी? जी नहीं। पढ़ाने वालों की कमी होगी? बिलकुल नहीं। दरअसल, स्कूल में सात शिक्षक, एक क्लर्क और एक भोजनमाता तैनात हैं। लेकिन पढ़ने वाला? बस एक वीर बालक!
इस एकमात्र छात्र ने 10वीं की परीक्षा दी और सभी विषयों में शान से फेल हुआ। हिंदी में थोड़ी रहमदिली दिखी – कुल 10 अंक दिए गए, बाकियों में स्थिति ऐसी कि बोर्ड भी शायद शर्मिंदा हो गया हो।
शिक्षा विभाग भी हैरान-परेशान
इस मामले में शिक्षा विभाग की नींद तब खुली जब 19 अप्रैल को बोर्ड का परिणाम आया और देखा कि भद्रकोट स्कूल का रिपोर्ट कार्ड पूरी तरह ‘नमस्ते’ कर गया। एक बच्चा – फेल; कुल परिणाम – शून्य प्रतिशत।
अब विभाग पूछताछ कर रहा है, शिक्षकों से जवाब मांगे जा रहे हैं, पर असल सवाल तो यह है – जब अध्यापक हर विषय के मौजूद हैं, तो बच्चे को पास कराने लायक भी नहीं बना पाए?
छात्र कम, स्टाफ ज्यादा: उल्टी गंगा
2023-24 में इस स्कूल में कक्षा 6 से 10 तक केवल 7 छात्र नामांकित थे। स्कूल में दो-दो बच्चों वाली कक्षाएं चल रही थीं, और सात शिक्षक दिल से ड्यूटी पर तैनात थे। यानी एक बच्चे पर लगभग एक शिक्षक – पर फिर भी नतीजा वही “ढाक के तीन पात”।
अब जांच होगी, रिपोर्ट बनेगी… और फिर वही ढाक?
अब प्रशासन जांच करवा रहा है, जवाब-तलब हो रहा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। सवाल सिर्फ एक छात्र के फेल होने का नहीं है – सवाल ये है कि क्या हमारी सरकारी शिक्षा प्रणाली सिर्फ वेतन और भोजन योजना चलाने के लिए रह गई है?